नई दिल्ली, 18 सितंबर 2025: भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने कमोडिटी मार्केट से जुड़ा एक बड़ा संकेत दिया है। SEBI के चेयरमैन तहिन कांता पांडेय ने मुंबई में मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (MCX) के एक कार्यक्रम में कहा कि अब समय आ गया है जब कमोडिटी मार्केट में और बड़े संस्थागत निवेशकों की एंट्री पर विचार होना चाहिए। इसमें बैंक, पेंशन फंड्स, बीमा कंपनियाँ और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI) शामिल हो सकते हैं।
अगर ये फैसला लागू होता है तो भारत का कमोडिटी डेरिवेटिव्स मार्केट न सिर्फ गहराई (depth) पाएगा, बल्कि इसमें तरलता (liquidity) भी काफी बढ़ जाएगी। यह कदम भारत को वैश्विक स्तर पर कमोडिटी मार्केट में एक मजबूत प्राइस सेटर (Price Setter) की स्थिति दिला सकता है।
संस्थागत निवेशकों को मिल सकती है इजाजत
SEBI अध्यक्ष ने कहा कि नियामक संस्था सरकार के साथ मिलकर इस दिशा में काम कर रही है कि कैसे बैंकों, पेंशन फंड्स और बीमा कंपनियों को कमोडिटी मार्केट में ट्रेडिंग की अनुमति दी जा सकती है। अभी तक इस बाजार में उनकी भागीदारी सीमित है, लेकिन आगे चलकर इन्हें शामिल करना बड़े बदलाव का संकेत हो सकता है।
इससे मार्केट में बड़े खिलाड़ी आएंगे और ट्रेडिंग वॉल्यूम कई गुना बढ़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर बैंक और पेंशन फंड्स जैसे बड़े संस्थागत निवेशक शामिल हुए तो कमोडिटी ट्रेडिंग का स्तर और पारदर्शिता दोनों बढ़ेंगी।
एफपीआई को भी मिलेगा नया मौका
पांडेय ने यह भी बताया कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) को non-agricultural commodities यानी धातु, ऊर्जा और अन्य गैर-कृषि कमोडिटी कॉन्ट्रैक्ट्स में ट्रेडिंग की अनुमति देने पर विचार किया जा रहा है।
लेकिन इसके लिए शर्त यह होगी कि ऐसे कॉन्ट्रैक्ट्स पूरी तरह cash-settled न हों। इसका सीधा मतलब है कि असली डिलीवरी वाले सौदों में एफपीआई की एंट्री पर विचार हो सकता है।
बेंचमार्क और इंडेक्स होंगे अहम
SEBI प्रमुख ने कहा कि भारतीय कमोडिटी मार्केट को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने के लिए बेंचमार्क इंडेक्स की जरूरत है। इन इंडेक्स को घरेलू और विदेशी दोनों ही बाजारों में स्वीकार्यता मिलनी चाहिए।
अगर भारत का अपना इंडेक्स अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता पाएगा तो कमोडिटी ट्रेडिंग में भारत की स्थिति और मजबूत होगी। यह न सिर्फ निवेशकों को आकर्षित करेगा बल्कि उत्पादकों और निर्यातकों को भी फायदा देगा।
निगरानी और नियम सख्त होंगे
SEBI अध्यक्ष ने साफ कहा कि निवेशकों की सुरक्षा और मार्केट की स्थिरता के लिए रीयल-टाइम मार्जिन कलेक्शन और सतत निगरानी जैसे नियम अनिवार्य होंगे।
उन्होंने जोर देकर कहा कि कमोडिटी मार्केट में पारदर्शिता और अनुशासन बनाए रखना बेहद जरूरी है। इसलिए नियामकीय ढांचा (regulatory framework) पहले से और मजबूत किया जाएगा।
नई समितियाँ और वर्किंग ग्रुप
कृषि कमोडिटी सेगमेंट को और गहराई देने के लिए पहले से ही एक समिति काम कर रही है। अब SEBI की योजना है कि मेटल्स और अन्य गैर-कृषि कमोडिटी के लिए भी एक अलग वर्किंग ग्रुप बनाया जाए।
इससे न केवल नए उत्पाद (products) और कॉन्ट्रैक्ट्स विकसित होंगे बल्कि कमोडिटी मार्केट में विविधता (diversification) भी बढ़ेगी।
दिसंबर तक बड़ी रिपोर्टिंग व्यवस्था
SEBI ने यह भी कहा कि दिसंबर 2025 तक यह सुनिश्चित किया जाएगा कि सभी कमोडिटी-स्पेसिफिक ब्रोकर कलेक्टिव रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म का हिस्सा बनें। इससे सभी ट्रेडिंग गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखी जा सकेगी और किसी भी तरह की गड़बड़ी को तुरंत पकड़ा जा सकेगा।
क्यों जरूरी है यह कदम?
1. तरलता में इजाफा
बैंक और पेंशन फंड्स जैसे बड़े संस्थागत निवेशक जब मार्केट में शामिल होंगे तो लेन-देन की मात्रा बढ़ेगी। इससे बाजार में लिक्विडिटी यानी तरलता आएगी और कीमतों में स्थिरता बनेगी।
2. हेजिंग का मौका
आज के समय में कमोडिटी प्राइस में तेजी से उतार-चढ़ाव होता है। ऐसे में अगर संस्थागत निवेशक मार्केट में आएंगे तो उत्पादक और व्यापारी वैश्विक झटकों (global shocks) से बचने के लिए बेहतर हेजिंग कर पाएंगे।
3. वैश्विक प्रतिस्पर्धा
अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में एल्यूमिनियम और कॉपर पर टैरिफ बढ़ाए गए हैं, जिससे भारतीय निर्यातक प्रभावित हो रहे हैं। अगर भारत का कमोडिटी मार्केट मजबूत होता है तो यह देश को वैश्विक स्तर पर कीमत तय करने वाला बड़ा खिलाड़ी बना सकता है।
4. आर्थिक विविधीकरण
धातु, ऊर्जा और अन्य गैर-कृषि कमोडिटी सेगमेंट में निवेश आकर्षित करने से भारत की अर्थव्यवस्था को एक नया आधार मिलेगा।
बाजार की सीधी प्रतिक्रिया
SEBI प्रमुख के इस बयान का सीधा असर शेयर बाजार पर भी देखने को मिला। MCX के शेयरों में करीब 4 से 5 प्रतिशत की तेजी दर्ज की गई।
निवेशकों को भरोसा है कि अगर संस्थागत निवेशक और एफपीआई की एंट्री होती है तो ट्रेडिंग वॉल्यूम बढ़ेगा और एक्सचेंज का कारोबार तेजी से बढ़ेगा।
चुनौतियाँ भी कम नहीं
हालांकि, इस कदम के साथ कई चुनौतियाँ भी हैं।
- नीतिगत अड़चनें: कई नियम और कानून बदलने होंगे।
- जोखिम प्रबंधन: कमोडिटी डेरिवेटिव्स में अस्थिरता ज्यादा होती है, इसलिए जोखिम नियंत्रण सबसे अहम होगा।
- स्पष्ट नियम: किन कॉन्ट्रैक्ट्स में एफपीआई को ट्रेडिंग की इजाजत मिलेगी और किन शर्तों के साथ, यह साफ करना होगा।
18 सितंबर 2025 को SEBI अध्यक्ष के इस बयान ने भारतीय कमोडिटी मार्केट में नई उम्मीदें जगा दी हैं। अगर आने वाले महीनों में बैंकों, पेंशन फंड्स, बीमा कंपनियों और एफपीआई को कमोडिटी ट्रेडिंग की अनुमति मिलती है तो यह भारत की अर्थव्यवस्था और निवेश बाजार के लिए ऐतिहासिक कदम साबित हो सकता है।
MCX और अन्य एक्सचेंजेज़ पहले ही इस घोषणा से उत्साहित हैं। हालांकि, असली तस्वीर तब साफ होगी जब सरकार और SEBI मिलकर इसके लिए ठोस नियम और नीतियाँ लेकर आएँगे।
👉 यह था पूरा अपडेट SEBI और भारतीय कमोडिटी मार्केट से जुड़ा। अब निवेशकों और ट्रेडर्स की नजरें सरकार और SEBI के अगले कदम पर टिकी हुई हैं।